तेरे इश्क़ में जी रहा हूँ तेरे इश्क़ में ही रहा हूँ बाकी झूठी हैं बातें तू मैं मगर सच हैं तेरे ज़िक्र की प्यास में हूँ तेरे ज़िक्र की पी रहा हूँ तन्हा रातें बीते ऐसे क़तरा शबनम का हो जैसे मेरी सुबह बैरी मैं तो ख़त्म सा ही रहा हूँ तेरे इश्क़ में जी रहा हूँ होते हैं जो चाहत में
सर सच हैं तेरे ज़िक्र की प्यास में हूँ तेरे ज़िक्र की पी रहा हूँ